@@INCLUDE-HTTPS-REDIRECT-METATAG@@ कांचिकामकोटि से शुरू हुई संदेश यात्रा का कश्मीर में होगा समापन

कांचिकामकोटि से शुरू हुई संदेश यात्रा का कश्मीर में होगा समापन

दस जून को कश्मीर पहुंचेगी अभिनव संदेश यात्रा
आध्यात्म गुरू श्रीश्री रविशंकर करेंगे यात्रा का समापन
11 जून को श्रीनगर में होगा भव्य कार्यक्रम का आयोजन

आचार्य अभिनवगुप्त भारतीय उपमहाद्वीप के उन शिखर महापुरुषों में से एक हैं जिन्होंने सम्पूर्ण दक्षिण एशिया को अपने चिंतन से समृद्ध किया। दर्शन और  ज्ञान-विज्ञान के साथ ही नाट्यशास्त्र के क्षेत्र में भी अपनी कालजयी रचनाओं के माध्यम से विश्व को भारतीय मनीषा का साक्षात्कार कराने वाले आचार्य अभिनवगुप्त का जन्म श्रीनगर में हुआ।


 

जम्मू काश्मीर के प्रत्येक निवासी के लिये यह गर्व की बात है कि आचार्य अभिनवगुप्त का जन्म यहां हुआ। उनका रचा साहित्य आज एक हजार वर्ष बाद भी न केवल प्रासंगिक है बल्कि आज की समस्याओं का भी समाधान देने वाला है। महान समन्वयवादी आचार्य ने अपने काल में प्रचलित सभी मत-मतान्तरों का गहन अध्ययन किया और उन सभी के साधकों के बीच समन्वय का आधार तैयार किया। एक ओर उन्होंने काश्मीरी शैव-दर्शन की व्याख्या की वहीं तंत्रशास्त्र के वे अधिकारी विद्वान हैं ही। इसके साथ ही उन्होंने जैन और बौद्ध गुरुओं के पास रह कर उनके दर्शन को भी समझा।     

काश्मीरी शैव दर्शन के सशक्त व्याख्याकार के रूप में आचार्य अभिनवगुप्त की प्रतिष्ठा है। दुनियाँ के दर्जनों देशों के प्रमुख विश्वविद्यालयों में उनकी रचनाओं पर शोध हो रहे हैं। भरत मुनि के ‘नाट्यशास्त्र’पर उनकी टीका “अभिनव भारती”, आनन्दवर्धन के ‘ध्वन्यालोक’ पर उनकी टीका “ध्वन्यालोक लोचन”तथा ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ पर उनकी टीका “गीतार्थ संग्रह” अत्यंत समादृत रचनाएं हैं।

आचार्य अभिनवगुप्त का प्रायः पूरा जीवन काश्मीर घाटी में ही बीता। श्रीनगर और उसके आस-पास अनेक ऐसे स्थान हैं जो उनकी तपस्थली के रूप में प्रसिद्ध हैं। इन्हीं में से एक स्थान बड़गाम जिले में स्थित भैरवगुफा है जो सुखनाग नामक नदी के निकट है। यह स्थान अब बीरवा कहलाता है। लोकमान्यता है कि आचार्य अभिनवगुप्त ने अपने रचे हुए भैरवस्त्रोत्र को गाते हुए इस गुफा में प्रवेश किया और शिव-सायुज्य को प्राप्त किया।

आचार्य अभिनवगुप्त के जन्म और निर्वाण का निश्चित विवरण कहीं प्राप्त नहीं होता, किन्तु भैरव स्त्रोत्र में उन्होंने वसुरस पौषे कृष्ण दशम्या कहते हुए स्त्रोत्र की रचना की तिथि दी है जो सर्वमान्य है। इससे यह स्थापित होता है कि उक्त तिथि को आचार्य सक्रिय और रचनाशील थे। देश आज उनका एक हजारवां साल मना रहा है।

अभिनवगुप्त सहस्राब्दी समारोह का आयोजन राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर हो रहा है। प्रख्यात मनीषी पूज्य श्रीश्री रविशंकर वर्ष भर चलने वाले इसकी समारोह समिति के अध्यक्ष हैं। आचार्य अभिनवगुप्त को स्मरण करने हेतु समारोह की कड़ी के रूप में एक यात्रा गत 31 मार्च को कांची कामकोटि पीठ से निवर्तमान शंकराचार्य पूज्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती के आशीर्वाद के साथ प्रारंभ हुई। यह यात्रा पूरे देश का भ्रमण करते हुए आगामी 11 जून को श्रीनगर में पूज्य श्रीश्री रविशंकर के उद्बोधन के साथ समाप्त होगी।

आचार्य अभिनवगुप्त सहस्त्राब्दी समारोह समिति के तत्वावधान में पूरे देश में अनेक प्रकार के समारोहों का आयोजन किया जा रहा है। यह इच्छा स्वाभाविक ही है कि उनके जन्मस्थान श्रीनगर में भी एक भव्य आयोजन हो। समूचे काश्मीर द्वारा इस आयोजन में बढ़-चढ़ कर भाग लेना भी स्वाभाविक ही है। किन्तु यह दुर्भाग्यपूर्ण है मुठ्ठी भर लोग अपने निजी कारणों से इसका विरोध कर रहे हैं और जनता को भी इसके लिये उकसा रहे हैं। वर्तमान राजनैतिक कारणों के चलते हजारों वर्षों की विरासत को नकारने का यह प्रयास निंदनीय है। जो लोग इस आयोजन का विरोध कर रहे हैं उन्हें ध्यान रखना चाहिये कि कोई भी देश अपने इतिहास और अपनी विरासत से मुंह मोड़ कर जी नहीं सकता। क्या वे अभिनवगुप्त की समन्वयवादी परंपरा में आगे हुए ललदे और नुंद ऋषि को भी नकार देंगे। यदि ऐसा है तो काश्मीर के समाज को ही यह तय करना होगा कि नफरत की इस आँधी को वे कब तक सहन करेंगे। आचार्य अभिनवगुप्त ने पचास से अधिक पुस्तकें लिखीं जिनमें से 28 आज भी उपलब्ध हैं। उनके समकालीन और बाद के विद्वानों ने उनको अपने लेखन में उदधृत किया है। ऐसे विद्वान के विषय में यदि कोई कहता है कि ऐसे किसी व्यक्ति का अस्तित्व ही नहीं था तो यह उसकी अज्ञानता को प्रदर्शित करता है।

आचार्य अभिनवगुप्त सहस्राब्दी समारोह समिति का गठन केवल इस वर्ष होने वाले आयोजनों के लिये हुआ है। वर्ष भर चलने वाले इन आयोजनों का समापन समारोह 7 जनवरी 2016 को बेंगलूर में होना निश्चित है जिसके बाद यह समिति भी समाप्त हो जायेगी। न यह किसी राजनैतिक विचार से प्रेरित है और न ही इसका उद्देश्य कोई आंदोलन खड़ा करना है। हाँ, इसका निरुद्देश्य विरोध अवश्य कुछ लोगों को उत्तेजित कर सकता है अथवा भावनात्मक लाभ लेने का अवसर प्रदान कर सकता है जिससे सभी को बचना चाहिये।

गत कुछ दिनों में जिस प्रकार अलगाववादी गुटों की ओर से बयान आ रहे हैं वे चिंतित करने वाले हैं। सहस्राब्दी समारोह समिति द्वारा किये जाने वाले शांतिपूर्ण आयोजन को जिस प्रकार विवादों में घसीटने की कोशिश की जा रही है उसकी यह समिति आलोचना करती है तथा शासन से मांग करती है कि दिनांक 11 जून को श्रीनगर में होने वाले कार्यक्रमों के दौरान विधि एवं कानून-व्यवस्था सुनिश्चित करे। समिति जम्मू काश्मीर के समस्त निवासियों से भी अनुरोध करती है कि वे आचार्य अभिनवगुप्त के चिंतन के अनुरूप जाति, धर्म, वर्ग आदि के भेदों से ऊपर उठ कर बड़ी संख्या में इस कार्यक्रम में भाग लें।