आचार्य अभिनवगुप्त सहस्राब्दी समारोह में डॉ मोहन भागवत और श्रीश्री रविशंकर ने किया सेना के जवानों का अभिनन्दन
JKSC   29-Sep-2016

‘अभिनव गुप्त का दर्शन विविधता में एकता का परिचायक है’- डॉ मोहन भागवत

‘अभिनव गुप्त के ज्ञान और समाज के प्रति दर्शन पर कहा कि भाव और ज्ञान सापेक्ष नहीं होता, वर्तमान की हमारी संस्कृति इसका विशेष उद्धरण है।’- श्रीश्री रविशंकर

नई दिल्ली, 29 सितंबर। राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर ने सीमा पर आतंकी हमलों की जवाबी कार्रवाई किए जाने पर जवानों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि प्रतिकार जरूरी होता है ताकि पता चले कि शांति की बात करने वाला देश डरता नहीं है।


आचार्य अभिनवगुप्त सहस्राब्दी समारोह समिति द्वारा आयोजित अभिनव समागम को संबोधित करते हुए आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर ने अपने आशीर्वचन में कहा कि सर्जिकल हमला प्रशंसनीय है। समय समय पर प्रतिकार जरूरी होता है। उन्होंने कहा कि जो राष्ट्र शस्त्र से संरक्षित है वहां शास्त्र पर चिंतन किया जा सकता है। आज देश में युवा जोश और अनुभव का होश दोनों देखने को मिल रहा है। अभिनव गुप्त के ज्ञान और समाज के प्रति दर्शन पर कहा कि भाव और ज्ञान सापेक्ष नहीं होता, वर्तमान की हमारी संस्कृति इसका विशेष उद्धरण है।

आरएसएस प्रमुख सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि अभिनव गुप्त का दर्शन विविधता में एकता का परिचायक है। उनकी सभी कृतियों में यह मूल रहा है कि विविधता का साक्षात्कार करना चाहिए। विविधता को जानना और उसके उपयोग से एकता के मानस को समझना ही ज्ञान का मूल है। एकता से ही सबका सृजन हुआ है, हमारे आचार्यों ने इस बात को अपने अनुभव से प्रसूत भी किया है। वसुधैव कुटुंबकम का यथार्थ भी यही है और अभिनव गुप्त का दर्शन भी। वहीं श्रीश्री रविशंकर जी के वक्तव्यों पर सहमति जताते हुए सभी के अभिनन्दन का समर्थन किया।

अपने संबोधन में डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि हमारी आंखों को भेद देखने की आदत हो गयी है। जबकि आचार्य अभिनव गुप्त कहते रहे कि भेदों के परे देखना ही सत्य है। सत्य यह नहीं कि हम किस प्रकार से लोगों से अलग देखते हैं बल्कि हमारी असली पहचान भारतीयता है.. और  इसी भाव में हम मानवों को विश्व बंधुत्व के रूप में देखते हैं। उन्होंने कहा कि ज्ञान की साधना लगातार प्रयास करते रहने में है। सत्य की उपासना करूणा के साथ करने वाला ही ज्ञान का वास्तविक सिद्धा होता है.. बिना करुणा के सत्य की साधना का कोई औचित्य ही नहीं है। शुद्ध मन ज्ञान की तपस्या की भारत की संकल्पना को साकार करना है। भागवत जी ने कहा कि सिद्धांत के पथ पर जो चले वही आचार्य होता है। अभिनव गुप्त ने ज्ञान और भाव को एक करके देखा है। अनुभव के जीवन मार्ग का पता चलना ही ज्ञान है। अपने संबोधन में आरएसएस प्रमुख ने पाकिस्तान जनित आतंकी हमलों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि आतंक को उत्तर मिलना चाहिए. ऐसा देश के युवाओं के मन में मंथन चल रहा था और जिसकी आशा थी वो हो भी गया। 

कार्यक्रम की प्रस्तावना और आचार्य अभिनवगुप्त के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. कपिल कपूर ने कहा कि पूरा देश हनुमान सिंड्रोम से ग्रसित है। देशवासियों के पास शक्ति तो है पर उन्हें उसका आभास नहीं है। ऐसे में लोगों को जागृत करने के लिए संतों का आगमन होता है.. अभिनव गुप्त भी ज्ञान के प्रवाह के लिए जन्में और सत्य की साधना का पथ बतलाया। उन्होंने कहा कि हमारा देश एकल साधना पर आधारित है और हमारी एकल चेतना ज्ञान परक है।

कार्यक्रम में पद्मश्री जवाहरलाल कौल द्वारा लिखित एवं उर्दू में अनुवादित अभिनवगुप्त और शैव दर्शन का पुनरोदय, डॉ. जयप्रकाश सिंह द्वारा लिखित संचारविद् अभिनवगुप्त, डॉ. जीतराम भट्ट द्वारा संकलित अभिनवसूक्ति शतकम् और भैरवस्त्रोत सहित पांच पुस्तकों का विमोचन किया गया। इसके साथ ही आचार्य अभिनवगुप्त के व्यक्तित्व, कृतित्व एवं दर्शन पर डॉ रजनीश शुक्ला द्वारा संकलित एक संग्रहणीय विशेषांक ‘प्रत्यभिज्ञान’ का भी विमोचन हुआ।

कार्यक्रम का संचालन जम्मू-काश्मीर अध्ययन केन्द्र के निदेशक आशुतोष भटनागर ने किया और आभार ज्ञापन पद्मश्री जवाहरलाल कौल ने किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ भारत माता और आचार्य अभिनवगुप्त के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। कार्यक्रम में आचार्य अभिनवगुप्त पर आधारित एक लघु वृत्तचित्र का प्रदर्शन भी हुआ। कार्यक्रम में मुख्य रुप से आरएसएस के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होशबाले, विश्व हिन्दू परिषद् के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री दिनेश चन्द्र और भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष श्याम जाजू उपस्थित रहे।

विदित हो कि आचार्य अभिनवगुप्त का जन्म दसवीं शताब्दी के मध्य काश्मीर में हुआ। वे काश्मीर शैव दर्शन के प्रखर विद्वान और भारत के एक महान दार्शनिक थे। आगम एवं प्रत्यभिज्ञा-दर्शन के प्रतिनिधि आचार्य होने के साथ ही वे साहित्य जगत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते थे। परमार्थसार, प्रत्यभिज्ञा विमर्शिनी, गीतार्थ संग्रह जैसे ग्रंथों की रचना करने के साथ ही उन्होंने भरतमुनि के नाट्यशास्त्र तथा आनंदवर्धन के ध्वन्यालोक पर टीका भी की जो आज कालजयी कृतियों में गिनी जाती है। मान्यता है कि आज से एक हजार साल पहले अभिनवगुप्त अपने 1200 शिष्यों के साथ शिव-स्तुति करते हुए काश्मीर में बड़गाम के निकट बीरवा नामक ग्राम में स्थित एक गुफा में शिवलीन हुए थे। वर्तमान में इटली, ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस सहित विश्व के पचास से अधिक विश्वविद्यालयों में अभिनवगुप्त पर शोध कार्य चल रहा है।

अभिनवगुप्त ने लगभग 42 पुस्तकें लिखीं थी लेकिन आज उनमें से कई तो उपलब्ध ही नहीं हैं। कुछ अधूरी पांडुलिपियां जरूर मिली हैं। तंत्र और शैव दर्शन के बारे में उन के प्रमुख ग्रंथों में तंत्रालोक और लाघवी और बृहत विमर्शिनी सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। तंत्रालोक तंत्र और शैव साधना पर विश्वकोषीय आकार का विशाल ग्रंथ है। इसी विषय को कम शब्दों तथा सरल भाषा में समझाने के लिए उन्होंने 'तंत्रसार' नाम से एक छोटा ग्रंथ लिखा। इसके अतिरिक्त कुल परम्परा पर लिखी मालिनीविजयावार्तिका और परात्रिंशिकाविवृति उनकी महत्त्वपूर्ण कृतियां हैं।